Gopal Sahai Ramjiwal – The New Age Astrologer

“I was never into Astrology, Rashifal. Rahu, Ketu or Shani were way beyond my comprehension. Until one day, when I came across a book on alternate astrology. Goswami Tulsidas Ji’s eloquent writing kept me hooked. Soon, I started developing a keen interest in this field.

I dwelled into Palm reading, Face reading, Yamal jyotish and Tarot cards too but not in a serious manner. After all the readings, I understood that everything was a game of vibrations. All the solitary planets send vibrations to planet Earth. Our bodies receive these vibrations from different planets and produce their own vibrations.

I was curious to learn the science behind all this. So I started researching more about the vibrations within our body. I was thrilled to learn that even Albert Einstein supported this theory. He had stated that everything in the universe sends vibrations. Great Thinker Tesla was also a staunch supporter of the vibration theory. ‘If you want to find the secrets of the universe, think in terms of energy, frequency and vibration.’ he said.

This new found world of horoscopic science was fascinating to me. I wanted to do something in this field. Something beyond what the other astrologers did.  I named this as VIBERSTROLOGY.

And that’s when the idea of building astrological software struck me. This was 25 years ago, a time before smartphones and the internet. But, I took the plunge. And after working on it for months, my very own viberstrology software was ready!

The next thing was to test it and I decided to set up my own stall outside a famous Mandir in our neighbouring town on day of a Mela. The crowd that came was way beyond what I could’ve imagined. People were so happy with the feedback, that by the end of the day even the village Sarpanch visited my stall. After that I put my computer in a famous mandir on a Wednesday where the footfall is high. The experience there was also positive. This gave me the boost.

But then, responsibilities showed up. I had to look after my business which kept me busy all through the day. Astrology started vanishing from my life. Nevertheless, I’d promised myself – ‘I’ll pursue astrology once I retire’. And finally 5 years ago, I fulfilled that promise and took up Astrology again.

In these 5 years, I’ve worked on developing 2 apps – Margdarshan Astrology and Good Morning Astrology. While building these apps I only had one thought in mind – Everyone who uses it should have a personalized experience. Astrology and Predicting the future differs from person to person, everyone has a different life and I didn’t want to give out generic sun sign predictions. After 4 years of designing, strategizing and executing, we finally went live last year!

In our society, the moment someone hears astrology they imagine temples and pandits. But Astrology is way beyond all this. Your horoscope is about the way you feel and act upon things. My apps are all set to bring a change in the way astrology is perceived. And I know for a fact that the day is not far away. Not because I am an astrologer who can predict the future. But because I know, I will give it my best and create my own future.”

To know more about Gopal Ramjiwal’s work visit these links
1. www.Goodmorningastrology.com
2. www.margdarshanastrology.com
3. www.viberstrology.com

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कर्ज , ताम्र पत्र और हनुमान

हर मानव के जीवन में ऐसा समय आता है जब वो आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा होता है । कर्ज और EMI की स्मस्याए उसके सहज जीवन को तनाव ग्रस्त बना देती है । ऐसे समय में वो धार्मिक कर्मकांड की तरफ़ मुड़ता है ।इस समय में हनुमान की पूजा उस को इस संकट से मुक्ति पाने में मदद करती है । कर्ज से मुक्ति पाने में ताम्र पत्र से बने उपकरण भी मदद करते है । साथ में मंगलवार एवं मंगल ग्रह का संयोग भी कर्ज को उतारने में मदद करते है ।

हनुमान, मंगलवार, मंगल ग्रह और ताम्रपत्र का क्या आपस में संबंध है और कैसे ये कर्ज उतारने में मदद करते है ।

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वृद्धि मंत्र

वृद्धि मंत्र

इन उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक को निश्चित कर ले और जाप प्रारम्भ कर दे ।

मंत्र जाप करने के लिए कमलगट्टों की माला उपयुक्त रहेगी ।

लक्ष्मी जी की स्थापना के साथ श्रीं यंत्र की स्थापना भी कर ले तो उचित होगा ।

श्री यंत्र प्राण प्रथिष्ट होना चाहिए ।

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पुष्य व्रत

मानव जाति में धन संपदा प्राप्त करने की और प्राप्त धन संपदा को बढ़ाने की अर्थात् वृद्धि करने की इच्छा अनंत काल से चली आ रही है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई उपाय बताये जाते है । कितने सफल है या कितने असफल है इसकी कोई guarantee नहीं ।कई ग्रंथों में कई टोटके लिखे है जो विभिन्न विद्वानों द्वारा सुझाये जाते है । ऐसा ही एक उपाय आपके सामने प्रस्तुत है ।

इस उपाय का नाम है पुष्य व्रत । ये एक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित उपाय है । इसे मैंने “ उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग ) लखनऊ द्वारा प्रकाशित और डॉ राजबलि पांडेय द्वारा सम्पादित ग्रंथ हिंदू धर्मकोश से लिया है ।

इस व्रत को पुष्य व्रत कहा जाता है ।

उद्देश्य है धन संपदा की वृद्धि ।

इसमें व्रती को शुक्लपक्ष में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र से इसे प्रारम्भ करना है और एक वर्ष तक करना है ।

इसमें व्रती को निश्चित दिवस को स्नान कर शुद्ध हो कर माता लक्ष्मी की पूजन कर एक समय भोजन करना है । और एक माला वृद्धि मंत्र का जाप करना है । ये एक माला जाप पूरे महीने करना है । तत्पश्चात् अगले पुष्य नक्षत्र वाले दिन लक्ष्मी की पूजा करके जाप की संख्या बढ़ाकर दो माला प्रतिदिन करनी है । इस प्रकार हर पुष्य नक्षत्र के दिन एक एक माला जाप की बढ़ानी है । जब एक वर्ष पूरा हो जाये तो इस का समापन करना चाहिए और दशांस का हवन एवं ब्राह्मणों को भोजन और दान देना चाहिए । भोजन में खीर का भोज्य अवश्य होना चाहिये । मंत्र जाप के लिए किसी विद्वान को संकल्प दिया जा सकता है ।
ऐसा करने वाले व्यक्ति की सम्पति में निरंतर वृद्धि होती रहती है ।
वृद्धि मंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु मेरा अगला ब्लॉग देखे

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बर्बरीक से बने श्याम

बर्बरीक से बने श्याम

भक्तों के श्याम बाबा बड़े दयालु है । वो हारने वाले के साथ है ।भक्तों की हारी हुई बाज़ी जिताने के लिए बाबा के पास चमत्कारी तीन तीर है जो भगवान कृष्ण को भी अचंभित कर देते है । ये वो दिव्य तीर है जो बर्बरीक ने देवी से तपस्या के बाद वरदान के रूप में पाये थे ।
बर्बरीक नाम बाबा का जन्म नाम है जो इन्हें इनके माता पिता ने दिया था । वे पांडव वंश के थे । उनके दादा पांडव पुत्र महाबली भीम थे ।श्याम का नाम उनको भगवान कृष्ण ने दिया था उनकी निश्छलता दानवीरता और युद्ध में वीरता और सत्य के प्रति उनकी अटूट भावना और निडरता को देखते हुए दिया था । पूरी भागवत में , महाभारत में या कहीं किसी पुराण में ऐसा वृतांत नही मिलता है सुदर्शन चक्र धारी भगवान कृष्ण ने अपने भक्त को अपना ख़ुद का नाम दिया हो और अपने रूप में पूजे जाने का वरदान दिया हो । ये है बाबा की महिमा महाभारत काल में ये तीर धनुषबाण के तीर थे । कलियुग में इन तीरों का रूप बदल गया है । वे अब तीन तीरों की जगह बाबा की पूजा के, आराधना के उपकरण बन गये है ।
वो तीन उपकरण है

तीनो की फोटो लेने के लिए विजिट करे हमारी website Prayeveryday.in.

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दान त्रिवेणी

भारतीय पौराणिक साहित्य में ऐसी अनंत कथाये और आख्यान आते है जिनसे दान का महत्त्व प्रदर्शित होता है। इस लेख में दान के सम्बन्ध में कुछ जानकारी जो मैंने विभिन्न स्तोत्रों से एकत्र की है वो आप के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। दान करने से जंहा अलौकिक लाभ और परिणाम तो मिलते ही है अपितु लौकिक लाभ भी मिलते है। ऐसा माना जाता है की किसी भी प्रकार की पूजा या धार्मिक कार्य हो वो बिना दान के अपूर्ण मन जाता है। सामान्य रूप से हम लोगों को ये शिकायत करते सुनते है की निय प्रतिदिन पूजा करते है लेकिन फिर भी भगवान प्रस्सन नहीं होते। जीवन की समस्याएं बनी रहती है। और इन समस्याओं का मूल कारण होता है अर्थ का आभाव। हमारी सभी पूजा कर्मकांड का उद्देश्य आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाना होता है। परन्तु जब सफलता नहीं मिलती तो निराश होकर हम ईश्वर और पूजा कर्मकांड पर अविश्वास करने लगते है। परन्तु हम ये भूल जाते है की पूजा में लौकिक फल प्राप्ति के लिए दान का करना जरुरी है। हम नित्य पूजा आरधना करते है इस विश्वास के साथ की हमारे दुःख और आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे परन्तु एक छोटासा दान नहीं करते परिणामस्वरूप हमे सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते। जिस तरह दाल में नमक न डालने से स्वाद नहीं प्राप्त हॉट उसी तरह दान किये बिना आर्थिक सफलता नहीं मिलती है। एक पौराणिक आख्यान जो ब्रह्म पुराण में आया है वो दान और आर्थिक सफलता के सम्बन्ध की महत्ता को बताता है

प्राचीन काल में एक ऋषि हुए थे उनका नाम मौद्गल्या था उनकी साध्वी पत्नी का नाम जाबालि था। ऋषि नित्य यज्ञ किया करते थे और थे उसमे बड़ी श्रद्धा से आहुति देते थे। भगवान विष्णु उस को स्वयं ग्रहण करते थे। प्रतिदिन ऐसा क्रम चलता था। ऋषि बड़े संतोषी थे जंगल में जो भी उन्हें मिलता था उस से ही अपना गुजरा करते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने कहा की मुझे कोई लालसा या लालच नहीं है परन्तु मेरी एक जिग्यसा है की जब भगवा विष्णु के दर्शन मात्र से दरिद्रता का नाश होता है तो आप को तो भगवान प्रतिदिन दर्शन देते है फिर आपको ये दरिद्रता क्यों सहन करनी पडी है ? ऋषि ने कहा मई कल भगवान से पूछूंगा। दुसरे दिन जब ऋषि ने भजन से ये ही प्रश्न किया तो भगवान ने कहा की हे ऋषिवर मै कर्म का फल देता हूं। आपने कभी कोई दान किया ही नहीं तो आपको समृद्धि कैसे प्राप्त हो ? तब ऋषि ने कहा की भगवान मै क्या दान दे सकता हूँ और किसको दान दूँ। तब भगवान ने कहा ये जो एक दाना जो का बचा है उसे मुझे दान कर दो ऋषि ने ऐसा ही किया तब भगवान् ने उन्हें लौकिक सम्पदा का आशीर्वाद दिया और उनकी दरिद्रता को दूर किया।
इस आख्यान से ये स्पष्ट हो गया की
०१- कोई भी पूजा भले ही वो नित्य पूजा ही क्यों न हो वो दान बिना अधूरी है।
०२ -दान सूक्ष्म भी हो परन्तु भावना और श्रद्धा से दिया जाय तो वो भगवन को स्वीकार्य है।
०३ -लौकिक सम्पदा प्राप्त करने के लिए दान करना जरुरी है।
अतः लौकिक पूजा की सफलता के लिए दान का होना जरुरी है। तभी हमे हमारी ईच्छा अनुरूप धन सम्पदा , सफलता प्राप्त होगी।
दान कई प्रकार से किये जाते है और कई प्रकार के होते है। मैंने मेरे विचार के अनुसार इन्हे तीन भागों में विभक्त किया है
०१ – नित्य दान
०२ -गौ दान
०३ – गुरु दान
नित्य दान से तातपर्य उस दान से है जो प्रतिदिन की पूजा के पश्चात चढ़ाना चाहिए परन्तु सामान्य रूप से कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है। और यही कारण होता है की पूजा की फल प्राप्ति नहीं होती है।
गौ दान के बारे में सभी जानते है परन्तु वर्तमान शहरी जीवन में गाय के लिए रोटी निकलना और फिर गाय को देना संभव नहीं है अतः मेरा निवेदन है की प्रतिदिन कुछ पैसा इस निमित्त अलग रखा जाय और महीने के अंत में किसी गौ शाला में दान दे दिया जावे तो उद्द्श्या की पूर्ती हो जाएगी।
गुरु दान से मेरा तात्पर्य ये है की गुरु की गद्दी के प्रति प्रतिदिन कुछ अंश अवश्य निकलना चाहिए और महीने के अंत में गुरुगृह भिजवा देना चाहिए
यदि दान की इस परिपाटी को निरंतर पालना करेंगे तो मेरा विश्वास है की आप की पूजा निरर्थक नहीं होगी और आप को अपनी लौकिक कामनाओ की पूर्ती अवश्य होगी।

गोपाल सहाय रामजीवाल

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Placement of 6 positive Shakun photo frame can change your life.

Jyotish shastra, Shakun shastra and vastu shastra are interrelated with each other.You start a new tour but unfortunately a when going outside you happen to met with a negative shakun, what is advised? Delay the journey or avoid this journey. Even after a good jyotishacharya has calculated planets . Such is the importance of a shakun.
Shakun shastra is a very great treatise and combined with jyotish and vastu it becomes an accurate prediction tool .
We are presenting six photo frames which can change your life towards happiness
These are
1. A cow feeding her calf
2. Two fish playing in water
3. A maid carrying a pitcher full of water along her child
4. A swastik
5. En Elephant
6. A snake climbing a tree.
These are positive signs which when appear can do miracles.
In modern times it is practically impossible to see these signs. So we thought it fit to present these signs in photo frame.
Every day having a look at these signs give positive vibes in your body and mind resulting in positive results.
To get these items pls contact
www.Prayeveryday.in

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Why PrayEveryday chooses Bas-Relief Moorties and base metal COPPER to make its photo frame and coins.

Bas-relief is an architectural name where the main design is engraved over a flat surface. Most of our old moorties are engraved over the stone that is why we choose this method so that we follow our Pauranik idea of Moorti Poojan.

Now comes the choice of metal. We chose Copper because it is the first metal to excavate from the earth. Copper is a basic and pure metal.

Our moorties are made with a base metal of copper. Copper is considered the best metal for engraving moorties and other accessories of pooja items.

In Jyotish, copper is related to Mangal Grah and Surya Grah.

Silver is considered as second good and pious metal to make moorties but considering the cost factor we covered the copper moorti with silver.

Silver plating and gold plating over copper increase the beauty and power of moorties without increasing cost.

Gold is the highest preferred metal to engrave a moorti. But considering cost factors nobody ventures in this direction, so we offer gold plating over copper moorties. PrayEveryday provides you the value, beauty, and power of gold without the cost of gold by gold plating the moorti at a very nominal cost.

This way all our items cover all positive aspects of all three metals at the lowest possible cost.

Praying to our moorties is as per our Pauranik Vidhi Vidhan By praying before energized moortis by PrayEveryday all your wishes will be fulfilled. You will be endowed with health, wealth, and respect in society.

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तंत्र-महाविज्ञान में यन्त्र

तंत्र महाविज्ञान की परम्परा में यन्त्र का विशेष महत्व है, क्योंकि यंत्र सम्बन्धित देवता का रूप माना गया है, जिसकी साधक उपासना करता है। साधना में यंत्र-रूपी देव शरीर में अपना ध्यान केन्द्रित करता है। कुलार्णव तंत्र में तंत्र की व्याख्या इस प्रकार की गई है-
यमभूतादि सर्वभ्यो मयेभ्योऽपि, कुलेश्वरि ।
त्रायते सततच्चैव तस्माद् यन्त्र मितीदितम् ॥
अर्थात् यम और समस्त प्राणियों से तथा सब प्रकार के भयों से त्राण करता है । हे कूलेश्वरी ! सर्वदा त्राण करने के कारण ही यह यंत्र कहा जाता है ।
यन्त्रों का निर्माण ज्यामितिक आधार पर विभिन्न रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों और वृत्तों से होता है । यन्त्र का महत्व कुलार्णव यन्त्र में इस प्रकार दर्शाया गया है-
“कामक्रोधादि दोषोत्य सर्वदः खनियन्त्रणात् ।
यन्त्रमित्याहुरेतस्मिन देव प्रणिति पूजितः ।।”
अर्थात् काम-ऋॊधादि दोषों के समस्त दुखों का नियन्त्रण करने से इन्हें यन्त्र कहा जाता है । यन्त्र के आधार पर पूजन से देवता तुरन्त प्रसन्न होते हैं ।

“श्री” यन्त्र
यन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ “श्री” यन्त्र है । इसका सम्बन्ध भगवती त्रिपुरसुन्दरी से है। (“योगिनी हृदय” में इसके आविर्भाव के सम्बन्ध में उल्लेख है कि परम्परा शक्ति अपने संकल्प बल से विश्व ब्रह्माण्ड का रूप धारण करती है और अपना रूप निहारती है तो ‘श्री’ चत्र का आविर्भाव होता है।)

श्री यन्त्र में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं विकास का प्रदर्शन है । इसमें श्री का विवेचन ‘श्रयते या सा श्री:” अर्थात् जो नित्य परमब्रह्म का आश्रयण करता है वह श्री है । जैसे प्रकाश अथवा गर्मी की अग्नि से और चन्द्र की चन्द्रिका से अभिन्नता रहती है । उसी प्रकार ब्रह्म और शक्ति की अभिन्नता है । आगम में वर्णन है-
“न शिवेन बिन देवो, न देव्या च बिना शिवः ।
नान्योरन्तर किञ्चिच्चन्द्रचन्द्रिकयोरिव ॥”

अर्थात् शिव के बिना देवी नहीं और देवी के बिना शिव नहीं । इन दोनों में कुछ भी अंतर नहीं है जैसे चन्द्र र चन्द्रिका में अन्तर नहीं होता।
“श्री” के कारण ही ब्रह्मा उत्पत्ति, स्थिति और पालन में सामर्थ्य प्राप्त करता है । शंकराचार्य ने कहा है-
शिवः शक्त्या युक्तो तदिमवति शक्तः प्रभविंतु। ।
न चेदेवं देवो न खलु कुथलः स्पन्दितुमपि ।।
अर्थात जो शिव-शक्ति सहित होता है, वही शक्तियुक्त एवं सामर्थ्यंवान होता है । वह
यदि शक्तिहीन हो तो बह स्पन्दन में भी योग्य नहीं होता।
महामहिमामयी त्रिपुरसुन्दरी के श्री यन्त्र में अनेक वृत्त हैं । सबसे भीतर वाले वृत्त के केन्द्र में एक बिन्दु है । इस बिन्दु के चारों ओर नौ त्रिकोण हैं जिनमें से पांच त्रिकोणों की नोंके नीचे की ओर शक्ति युक्तियां तथा चार त्रिकोणों की नोंके ऊपर की ओर शिव युतियां होती है । अधोमुखी पांचों त्रिकोणों पंच पाण, पंच ज्ञानेन्द्रियों, पंच कर्मेंन्द्रियों, पंच तन्मात्रा झरोर पंच महाभूतों के प्रतीक है ।
ऊर्ध्वमुखी चारों त्रिकोण शरीर में जीव, प्राण, शुक्र और मज्जा के द्योतक हैं । ये ब्रह्माण्ड में मन, बुद्धि, चित्त पौर अहंकार के द्योतक हैं ।
चारों ऊर्ध्वमुखी और पांचों अधोमुखी त्रिकोण नौ मुल प्रवृतियों के प्रतिनिधि है ।
श्री यन्त्र में एक अ्रष्टदल कमल और दूसरा सोलह दल वाला कमल है । अष्टदल कमल अन्दर बाले वृत्त के बाहर और दूसरा उसके ऊपर बाले वृत्त के बाहर है । इनका वरणन भगवान शंकराचार्य ने “प्रानन्द लहरी” में करते हुए बताया है–
चतु्भिः श्रीकण्ठेः शिवयुवतिभिः पंचमिरपि ।
प्रभिन्नाभिः शम्भोनंबभिरपि मूलप्रकृतिमि: ।
अयश्चत्वा दिशदवसुदलकलाब्ज त्रिवलयं ।
त्रिरेखाभिः साधं तव भवन कोणः परिणताः ।।
अ्र्थात् चार श्रीकण्डों के पांच शिव युतियों के शम्भु एव शक्ति की नौ अभिन्न मूल प्रकृतियों के 42 वसुदल कलाओं की त्रिवलय तीन रेखाओं के साथ आपके भवन कोण में परिणित होते हैं ।
श्री यन्त्र में ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण अग्नि तत्व के, वृत्त वायु के, बिन्दु आकाश का घरातल पृथ्वी तत्व का ओर अरघोमुखी त्रिकोण जल तत्व के प्रतीक है । यह यन्त्र सृष्टि क्रम का द्योतक है । शकर और इनके मतानुयायी इसी यन्त्र के उपासक है । इनके मठों में इस श्री यन्त्र की विशेष प्रतिष्ठा है ।
कौल मत सम्बन्धी “श्री यन्त्र” में जो अन्तर होता है, इसमें पांचों शक्ति त्रिकोण अधोमुखी और चारों शिव सम्बन्धी त्रिकोण ऊर्ध्वमुखी होते हैं ।

श्री यंत्र भारतीय पौराणिक संस्कृति का मुख्य उत्पादन है जो आपको भौतिक धन-संपत्ति एवं वैभव प्रदान करने का साधन है। यदि यह आपके पास है तो बहुत उत्तम बात है परन्तु अगर नहीं है तो आप हमारी वेबसाइट से इस खरीद सकते हैं।
क्या आपका श्री यंत्र जागृत है?
जागृत होने का तात्पर्य कई लोगों को लगता है कि क्या श्री यंत्र को पूजन करके उसका अभिषेक कर दिया गया है एवं प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई है। परन्तु Prayeveryday में जागृत से तात्पर्य खाली अभिषेक करके प्राण प्रतिष्ठा करना ही नहीं है। जागृत होने से हमारा तात्पर्य है कि क्या “श्री” यंत्र आपको लाभ दे पा रहा है की नहीं?
यदि आपको लगे की आपको आशा अनुसार लाभ नहीं हो रहा तो आप अपने यंत्र को जागृत करें।
कैसे?

  1. श्री यन्त्र एक मशीन है जो आपको धन संपत्ति एवं वैभव प्रदान करती है।
  2. इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें।
  3. प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद इस धन और वैभव प्रदान करने वाली मशीन में input डालें अर्थात् raw material डालें क्योंकि बिना raw material के कोई मशीन उत्पादन नहीं कर सकती।
  4. श्री यंत्र का कच्चा माल (raw material) है “दान”, नियमित रूप से कुछ दान अवश्य करें। नित्य पूजन के बाद कुछ दान इस पर चढ़ावें एवं उस चढ़ावें को किसी मंदिर में या किसी गरीब व्यक्ति को सहायता देने में इस्तेमाल करें, जानवरों को दाना डालें, चीटियों को दाना डालें, कुत्तों को दूध पिलावें, जबतक दान के रूप में raw material श्री यन्त्र में आप नहीं डालेंगे तो श्री यंत्र जागृत नहीं होगा।
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Importance of Daanam!!!

Theory of daanam

Sometimes we forget that our relationship with God is a two-way street. We often leave out the ritual of daanam from our daily prayers. We often pray to God for tangible material things, without realizing that we are not offering God the same courtesy. In order for our daily prayers to work, one key component is making an offering to God. Let us look at a story from Braham Purana to understand the importance of this ritual of giving.

There was once a sage named Maugdaliya. He was a simple yet wise man. His repute was of such great worth that his prayers were accepted by Lord Vishnu himself. He never asked the Lord for anything material, but he conducted poojas daily. One day, Maugdaliya’s wife Jabali, asked him why they were so poor if his prayers had such worth. Maugdaliya then posed this question to Lord Vishnu. Lord Vishnu told him that he could not give Maugdaliya material wealth because Maugdaliya never gave him any daan. To this, Maugdaliya responded saying that he had nothing worth offering. Lord Vishnu told him that the few corns of barley that he had would suffice and so Maugdaliya gave them to the Lord as offering. Seeing the sage’s dedication, Lord Vishnu blessed him with worldly riches. The katha of Krishna Sudama is also famously known. Krishna knew that Sudama would not make an offering to him so he forcefully took two morsels of rice from his hand. The next day he bestowed Sudama with immense wealth.

From these kathas it can be understood that the objective of daanam is not to give away your riches. The objective of daanam is to show your devotion to God by being willing to offer him whatever you have. Daanam can be divided into three categories for daily puja:

1. Guru daanam
This is the daanam offered to the Guru who is acting as a conduit for your prayer and conversation with God.
2. Gau graas daanam
This refers to the daanam offered to the sacred animal, cow. Grazing the cow and giving him his first morsel is considered to be an act of devotion to God.
3. Dev daanam
The final stage, is the offering that you make directly to God. These offerings are made to Ishta Devta so that your prayers for material wealth can be met.

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