वृद्धि मंत्र

वृद्धि मंत्र

इन उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक को निश्चित कर ले और जाप प्रारम्भ कर दे ।

मंत्र जाप करने के लिए कमलगट्टों की माला उपयुक्त रहेगी ।

लक्ष्मी जी की स्थापना के साथ श्रीं यंत्र की स्थापना भी कर ले तो उचित होगा ।

श्री यंत्र प्राण प्रथिष्ट होना चाहिए ।

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पुष्य व्रत

मानव जाति में धन संपदा प्राप्त करने की और प्राप्त धन संपदा को बढ़ाने की अर्थात् वृद्धि करने की इच्छा अनंत काल से चली आ रही है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई उपाय बताये जाते है । कितने सफल है या कितने असफल है इसकी कोई guarantee नहीं ।कई ग्रंथों में कई टोटके लिखे है जो विभिन्न विद्वानों द्वारा सुझाये जाते है । ऐसा ही एक उपाय आपके सामने प्रस्तुत है ।

इस उपाय का नाम है पुष्य व्रत । ये एक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित उपाय है । इसे मैंने “ उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग ) लखनऊ द्वारा प्रकाशित और डॉ राजबलि पांडेय द्वारा सम्पादित ग्रंथ हिंदू धर्मकोश से लिया है ।

इस व्रत को पुष्य व्रत कहा जाता है ।

उद्देश्य है धन संपदा की वृद्धि ।

इसमें व्रती को शुक्लपक्ष में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र से इसे प्रारम्भ करना है और एक वर्ष तक करना है ।

इसमें व्रती को निश्चित दिवस को स्नान कर शुद्ध हो कर माता लक्ष्मी की पूजन कर एक समय भोजन करना है । और एक माला वृद्धि मंत्र का जाप करना है । ये एक माला जाप पूरे महीने करना है । तत्पश्चात् अगले पुष्य नक्षत्र वाले दिन लक्ष्मी की पूजा करके जाप की संख्या बढ़ाकर दो माला प्रतिदिन करनी है । इस प्रकार हर पुष्य नक्षत्र के दिन एक एक माला जाप की बढ़ानी है । जब एक वर्ष पूरा हो जाये तो इस का समापन करना चाहिए और दशांस का हवन एवं ब्राह्मणों को भोजन और दान देना चाहिए । भोजन में खीर का भोज्य अवश्य होना चाहिये । मंत्र जाप के लिए किसी विद्वान को संकल्प दिया जा सकता है ।
ऐसा करने वाले व्यक्ति की सम्पति में निरंतर वृद्धि होती रहती है ।
वृद्धि मंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु मेरा अगला ब्लॉग देखे

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बर्बरीक से बने श्याम

बर्बरीक से बने श्याम

भक्तों के श्याम बाबा बड़े दयालु है । वो हारने वाले के साथ है ।भक्तों की हारी हुई बाज़ी जिताने के लिए बाबा के पास चमत्कारी तीन तीर है जो भगवान कृष्ण को भी अचंभित कर देते है । ये वो दिव्य तीर है जो बर्बरीक ने देवी से तपस्या के बाद वरदान के रूप में पाये थे ।
बर्बरीक नाम बाबा का जन्म नाम है जो इन्हें इनके माता पिता ने दिया था । वे पांडव वंश के थे । उनके दादा पांडव पुत्र महाबली भीम थे ।श्याम का नाम उनको भगवान कृष्ण ने दिया था उनकी निश्छलता दानवीरता और युद्ध में वीरता और सत्य के प्रति उनकी अटूट भावना और निडरता को देखते हुए दिया था । पूरी भागवत में , महाभारत में या कहीं किसी पुराण में ऐसा वृतांत नही मिलता है सुदर्शन चक्र धारी भगवान कृष्ण ने अपने भक्त को अपना ख़ुद का नाम दिया हो और अपने रूप में पूजे जाने का वरदान दिया हो । ये है बाबा की महिमा महाभारत काल में ये तीर धनुषबाण के तीर थे । कलियुग में इन तीरों का रूप बदल गया है । वे अब तीन तीरों की जगह बाबा की पूजा के, आराधना के उपकरण बन गये है ।
वो तीन उपकरण है

तीनो की फोटो लेने के लिए विजिट करे हमारी website Prayeveryday.in.

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दान त्रिवेणी

भारतीय पौराणिक साहित्य में ऐसी अनंत कथाये और आख्यान आते है जिनसे दान का महत्त्व प्रदर्शित होता है। इस लेख में दान के सम्बन्ध में कुछ जानकारी जो मैंने विभिन्न स्तोत्रों से एकत्र की है वो आप के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। दान करने से जंहा अलौकिक लाभ और परिणाम तो मिलते ही है अपितु लौकिक लाभ भी मिलते है। ऐसा माना जाता है की किसी भी प्रकार की पूजा या धार्मिक कार्य हो वो बिना दान के अपूर्ण मन जाता है। सामान्य रूप से हम लोगों को ये शिकायत करते सुनते है की निय प्रतिदिन पूजा करते है लेकिन फिर भी भगवान प्रस्सन नहीं होते। जीवन की समस्याएं बनी रहती है। और इन समस्याओं का मूल कारण होता है अर्थ का आभाव। हमारी सभी पूजा कर्मकांड का उद्देश्य आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाना होता है। परन्तु जब सफलता नहीं मिलती तो निराश होकर हम ईश्वर और पूजा कर्मकांड पर अविश्वास करने लगते है। परन्तु हम ये भूल जाते है की पूजा में लौकिक फल प्राप्ति के लिए दान का करना जरुरी है। हम नित्य पूजा आरधना करते है इस विश्वास के साथ की हमारे दुःख और आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे परन्तु एक छोटासा दान नहीं करते परिणामस्वरूप हमे सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते। जिस तरह दाल में नमक न डालने से स्वाद नहीं प्राप्त हॉट उसी तरह दान किये बिना आर्थिक सफलता नहीं मिलती है। एक पौराणिक आख्यान जो ब्रह्म पुराण में आया है वो दान और आर्थिक सफलता के सम्बन्ध की महत्ता को बताता है

प्राचीन काल में एक ऋषि हुए थे उनका नाम मौद्गल्या था उनकी साध्वी पत्नी का नाम जाबालि था। ऋषि नित्य यज्ञ किया करते थे और थे उसमे बड़ी श्रद्धा से आहुति देते थे। भगवान विष्णु उस को स्वयं ग्रहण करते थे। प्रतिदिन ऐसा क्रम चलता था। ऋषि बड़े संतोषी थे जंगल में जो भी उन्हें मिलता था उस से ही अपना गुजरा करते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने कहा की मुझे कोई लालसा या लालच नहीं है परन्तु मेरी एक जिग्यसा है की जब भगवा विष्णु के दर्शन मात्र से दरिद्रता का नाश होता है तो आप को तो भगवान प्रतिदिन दर्शन देते है फिर आपको ये दरिद्रता क्यों सहन करनी पडी है ? ऋषि ने कहा मई कल भगवान से पूछूंगा। दुसरे दिन जब ऋषि ने भजन से ये ही प्रश्न किया तो भगवान ने कहा की हे ऋषिवर मै कर्म का फल देता हूं। आपने कभी कोई दान किया ही नहीं तो आपको समृद्धि कैसे प्राप्त हो ? तब ऋषि ने कहा की भगवान मै क्या दान दे सकता हूँ और किसको दान दूँ। तब भगवान ने कहा ये जो एक दाना जो का बचा है उसे मुझे दान कर दो ऋषि ने ऐसा ही किया तब भगवान् ने उन्हें लौकिक सम्पदा का आशीर्वाद दिया और उनकी दरिद्रता को दूर किया।
इस आख्यान से ये स्पष्ट हो गया की
०१- कोई भी पूजा भले ही वो नित्य पूजा ही क्यों न हो वो दान बिना अधूरी है।
०२ -दान सूक्ष्म भी हो परन्तु भावना और श्रद्धा से दिया जाय तो वो भगवन को स्वीकार्य है।
०३ -लौकिक सम्पदा प्राप्त करने के लिए दान करना जरुरी है।
अतः लौकिक पूजा की सफलता के लिए दान का होना जरुरी है। तभी हमे हमारी ईच्छा अनुरूप धन सम्पदा , सफलता प्राप्त होगी।
दान कई प्रकार से किये जाते है और कई प्रकार के होते है। मैंने मेरे विचार के अनुसार इन्हे तीन भागों में विभक्त किया है
०१ – नित्य दान
०२ -गौ दान
०३ – गुरु दान
नित्य दान से तातपर्य उस दान से है जो प्रतिदिन की पूजा के पश्चात चढ़ाना चाहिए परन्तु सामान्य रूप से कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है। और यही कारण होता है की पूजा की फल प्राप्ति नहीं होती है।
गौ दान के बारे में सभी जानते है परन्तु वर्तमान शहरी जीवन में गाय के लिए रोटी निकलना और फिर गाय को देना संभव नहीं है अतः मेरा निवेदन है की प्रतिदिन कुछ पैसा इस निमित्त अलग रखा जाय और महीने के अंत में किसी गौ शाला में दान दे दिया जावे तो उद्द्श्या की पूर्ती हो जाएगी।
गुरु दान से मेरा तात्पर्य ये है की गुरु की गद्दी के प्रति प्रतिदिन कुछ अंश अवश्य निकलना चाहिए और महीने के अंत में गुरुगृह भिजवा देना चाहिए
यदि दान की इस परिपाटी को निरंतर पालना करेंगे तो मेरा विश्वास है की आप की पूजा निरर्थक नहीं होगी और आप को अपनी लौकिक कामनाओ की पूर्ती अवश्य होगी।

गोपाल सहाय रामजीवाल

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