Shakun Sastra

भारतीय पौराणिक साहित्य के अनुसार शकुन का निर्माण अथवा खोज श्रृष्टि के निर्माण के साथ ही, श्रष्टि की भलाई के लिए परम पिता ब्रह्मा जी ने किया था । शकुन शास्त्र बड़ा विशाल है । आज की परिस्थिति में शकुन शास्त्र से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ बिना किसी विशेष परिश्रम के कैसे व किन शकुनों से लिया जा सकता है । इस उद्देश्य से हमने रामचरितमानस का सहारा लिया । गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम के विवाह के समय उपस्थित शकुनों के बारे में लिखा है, की भगवान की बारात के सामने होने वाले सभी शकुन नाच उठे और अपने भाग्य की प्रशंसा करने लगे और ये उच्चारण करने लगे की हमारा शकुन होना आज सार्थक हो गया । उस समय होने वाले शकुनों में से ही कुछ हमने आज के लिये चुने है ।

वास्तु शास्त्र और शकुन शास्त्र ।

भारत के पौराणिक ग्रंथ वास्तु शास्त्र और शकुन शास्त्र का अपनी-अपनी जगह महत्व है । परंतु वास्तु शास्त्र में शकुन शास्त्र शामिल है, लेकिन शकुनशास्त्र में वास्तु शास्त्र शामिल नहीं है । वास्तु शास्त्र का एक मात्र उद्देश्य ये है की अपने जातक का जीवन किसी समस्या के बिना आनंद पूर्वक व्यतीत हो । यह ही उद्देश्य शकुन शास्त्र का भी है । वास्तु शास्त्र अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए शकुन शास्त्र का सहारा भी लेता है । अपने जातक की समस्यों के समाधान हेतु ये सुझाव दिया जाता हैं, की विभिन्न स्थानों पर शकुन शास्त्र के अनुसार शुभ मूर्तियों की स्थापना करे । कई ऐसी मूर्तियाँ है लेकिन उन मे से कुछ मूर्तियाँ जो विद्वानों के द्वारा अधिक प्रमाणित है वो संख्या में ६ है । इन मूर्तियों को हमने 3 variant में बनाया है। जिनका बजट ज़्यादा नहीं है, उनके लिए Copper, मध्यम बजट वालो के लिये Silver Plated over Copper, उच्च बजट के लिए Gold Plated over Copper.

इन ६ तस्वीरों के बारे में कुछ जानकारी यें है ।

* स्वास्तिक :- 

स्वास्तिक के बारे में क़रीब-क़रीब सभी भारत वर्षीय लोग जानते है । नवगृह पूजा या गृह प्रवेश पूजा या अन्य कोई भी पूजा हो ,सभी में स्वास्तिक बनाया या स्वास्तिक की मूर्ति रखी जाती है । इसका संबंध विघ्नविनाशक गणपति से जोड़ा जाता है । घर में सुख-शांति, विघ्न-नाश, लक्ष्मी के सुगम-आगमन हेतु इसे गृह द्वार पर स्थापित किया जाता है । स्वास्तिक बनाते समय ये ध्यान रखना चाहिये की रेखाये सीधी हो, मोटी पतली नहीं हो, टूटी हुई नहीं हो । हाथ से बनाने में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है । अतः किसी पात्र जैसे ताम्र ,सिल्वर, गोल्ड इत्यादि की हो तो शुभ और सुंदर होगा ।

* पनिहारिन :-

कोई सुहागन स्त्री अपने बालक को गोद में लिये, या अंगुली पकड़ कर चलते हुए, और सिर पर पानी से भरा मटका लिए हुये जाती हुई दृष्टिगोचर हो तो ऐसी मूर्ति के दर्शन घर में सुख शांति एवं बचत हेतु श्रेष्ठ माना जाता है ।

* अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई गाय :-

गाय का महत्व पौराणिक ग्रंथों में विशद रूप में प्रदर्शित है । सिर्फ़ गाय के दर्शन को भी अच्छा शकुन माना जाता है । परंतु यदि गाय के साथ बछड़ा हो तो वो दृश्य एक सीढ़ी ऊपर हो जाता है । लेकिन यदि गाय अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई दृष्टि गोचर हों जाय तो यह शकुन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । भगवान राम के विवाह में बारात के सामने सभी बारातियों को यह दर्शन हुए थे । जिसे मुनि वशिष्ठ ने मंगलकारी बताया था।

* मीन युग्म :-

दो मछली को जल में अठखेलियाँ करते देखना भी एक शुभ शकुन है । अठखेलियाँ करती मछली निर्द्वंद जल में दिखना यह बच्चों के लिए शुभ है । यह बच्चों को निर्मल निर्द्वंद्व अठखेलियाँ करने की प्रेरणा देती है । भगवान राम की बारात को भी यह दृश्य नज़र आया था ।

* झालर झुलाता हुवा हाथी :-

हाथी भगवान गणेश का प्रतिबिंब माना जाता है। हाथी की एक विशेषता यह है, की वो जब चलना प्रारंभ करता है तो रुकता नहीं । हाथी धीरे-धीरे चलेगा लेकिन रुकेगा नहीं । यदि शृंगार किए हाथी के दर्शन हो जाय तो व्यापारी या व्यवसायी को मानना चाहिए की इनकम धीरे-धीरे चलती रहेगी । अंत में रिजल्ट यह होता है की धीरे-धीरे सेल्स भी बढ़ती है और Profit भी बढ़ता है । अतः इस तस्वीर को दीवार पर ऐसी जगह लगाना चाहिये, जहां से इसके दर्शन व्यापार या व्यवसाय अथवा नौकरी की लिए प्रस्थान करते समय हो सके ।

* हरे पेड़ पर सर्प को चढते हुए देखना :-

शकुन शास्त्र के अनुसार ऐसे दृश्य का देखना संबंधित व्यक्ति को राज योग का निर्माण करता है । ऐसा माना जाता है, की ऐसा दृश्य देखने वाले के लिए यह दृश्य राजयोग का निर्माण कर देता है। जो व्यक्ति उच्च राज्य अधिकारी बनने की इच्छा रखते है ये शकुन, इस शकुन का नित्य दर्शन उन्हें सफलता में मदद करता है ।

इन सारे शकुनो की मूर्तियाँ हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है । आप हमारी वेबसाइट से या Goodomen website सें Purchase कर सकते है ।

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Some unknown aspects about Hanuman ji

हनुमान जी के बारे में कुछ अनछुए पहलू:

हनुमान जी के पूर्व जन्म की कथा –  हनुमान जी पूर्व जन्म में भी रुद्र और विष्णु के अवतार थे । इस का वृतांत निम्न  प्रकार है । कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी को अपना पूर्व जन्म जानने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने भगवान श्री राम से कहा कि “हे प्रभु आप तो अन्तर्यामी हैं। मुझे मेरा पूर्व जन्म बता दे। हे हनुमान, तुम पूर्व जन्म में मेरे और महादेव का मिश्रित अवतार थे।” तुम्हारा आधा शरीर विष्णु का अर्थात् मेरा था और आधा शरीर मेरे आराध्य भगवान भोलेनाथ का। तुमने उस जन्म में महाशनी नामक असुर का वध किया था, जिसने ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर अनाकानेक वरदान प्राप्त किए थे। उसकी जटा में विद्युत की शक्ति थी, उसने देवराज इन्द्र को बन्दी बनाकर उनके भ्राता वरुण देव की पुत्री से बलपूर्वक विवाह किया था। इसके पश्चात् इन्द्र और उनकी पत्नी शची ने मेरी और महादेव की तपस्या की। जिसके बाद हमने विष्कपि रूप लिया और उसमें आधा शरीर मेरा और आधा शरीर महादेव का था। इसके बाद एक ही छलांग में पाताल लोक पहुंचकर तुमने महाशनी का वध कर दिया और उसके बाद विष्कपि ने तुम्हारे रूप में जन्म लिया।

१. हनुमान जी रुद्र के १९ वे अवतार है ।

२. हनुमान जी सप्त चिरंजीवी ( जो अमर है ) में आते है ।

३. हनुमान जी ने ही गोस्वामी तुलसीदास जी को भगवान राम और लक्ष्मण के दर्शन कराये थे ।

४. हनुमान जी ने भगवान सूर्य से विद्या ग्रहण की है । सूर्य भगवान मना कर रहे थे । उन्हें आशंका थी, की कहीं भूख लगने पर दोबारा वो सूर्य को निगल न जाये ।

५. क्योंकि भगवान सूर्य हमेशा चलयमान रहते है, अतः हनुमान जी उनके रथ के आगे उल्टे पाँव दोड़ते रहते थे । और ऐसे ही उन्होंने पूरी दसों विद्याओं का अध्ययन किया।

६. क्या आप जानते है की हनुमान जी ने बाल ब्रह्मचारी रहते हुए भी विवाह बंधन को स्वीकार किया था ? इसकी कथा इस प्रकार है । विद्या अध्यन के मध्य जब उन्होंने ६ विद्या ग्रहण कर ली थी । एक समस्या आ गई की शेष ४ विद्या के लिये शिष्य को  विवाहित होना आवश्यक था । ऐसे में सूर्य भगवान ने अपनी तपस्वी पुत्री सुवर्चला का विवाह हनुमान जी से कर दिया । लेकिन विवाह के तत्काल बाद सुवर्चला तपस्या के लिए चली गई और हनुमान जी ने अपने ब्रह्मचर्य को अक्षुण्ण रखा । इस विवाह के लिए वो अपने गुरु की आज्ञा से ही तैयार हुए थे ।

७ . शिक्षा के बाद उन्होंने गुरु दक्षिणा की प्रार्थना की तो सूर्य भगवान ने उनसे एक प्रतिज्ञा करायी की वो सुग्रीव ( जो सूर्य पुत्र है ) की रक्षा हमेशा करेंगे । और यही कारण था की हनुमान जी हमेशा सुग्रीव के साथ रहे ।

८. हनुमान जी के ५ भाई और थे । उनके नाम है :गतिमान , श्रुतिमान , धृतिमान , केतुमान और मतिमान।

९. भारत में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान जी की पत्नी सहित पूजा की जाती है । उस स्थान का नाम इस प्रकार है:- तेलंगाना के खम्‍मम जिले में हनुमान जी और उनकी पत्नी सुवर्चला की पूजा होती है। यह विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां हनुमान जी अपनी पत्नी के साथ पूजे जाते हैं। सूर्य तेज से उत्पन्न होने के कारण वह सूर्य पुत्री कहलाईं और इस लिहाज से सूर्य देव हनुमान जी के ससुर भी हुए।

१०. हनुमान जी के एक पुत्र भी है जिनका नाम  “मकरध्वज” है ।

HanumanJi

११.हनुमान जी के पूर्व जन्म की कथा –  हनुमान जी पूर्व जन्म में भी रुद्र और विष्णु के अवतार थे । इस का वृतांत निम्न  प्रकार है । कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी को अपना पूर्व जन्म जानने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने भगवान श्री राम से कहा कि “हे प्रभु आप तो अन्तर्यामी हैं। मुझे मेरा पूर्व जन्म बता दे। हे हनुमान, तुम पूर्व जन्म में मेरे और महादेव का मिश्रित अवतार थे।” तुम्हारा आधा शरीर विष्णु का अर्थात् मेरा था और आधा शरीर मेरे आराध्य भगवान भोलेनाथ का। तुमने उस जन्म में महाशनी नामक असुर का वध किया था, जिसने ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर अनाकानेक वरदान प्राप्त किए थे। उसकी जटा में विद्युत की शक्ति थी, उसने देवराज इन्द्र को बन्दी बनाकर उनके भ्राता वरुण देव की पुत्री से बलपूर्वक विवाह किया था। इसके पश्चात् इन्द्र और उनकी पत्नी शची ने मेरी और महादेव की तपस्या की। जिसके बाद हमने विष्कपि रूप लिया और उसमें आधा शरीर मेरा और आधा शरीर महादेव का था। इसके बाद एक ही छलांग में पाताल लोक पहुंचकर तुमने महाशनी का वध कर दिया और उसके बाद विष्कपि ने तुम्हारे रूप में जन्म लिया।

१२. तेरह नाम, उनके अर्थ और उनका महत्व संपादित करते है :-

1. हनुमान – जिनकी ठोड़ी टूटी हो

2. रामेष्ट – श्री राम भगवान के भक्त

3. उधिकर्मण – उद्धार करने वाले

4. अंजनीसुत – अंजनी के पुत्र

5. फाल्गुनसखा – फाल्गुन अर्थात् अर्जुन के सखा

6. सीतासोकविनाशक – देवी सीता के शोक का विनाश करने वाले

7. वायुपुत्र – हवा के पुत्र

8. पिंगाक्ष – भूरी आँखों वाले

9. लक्ष्मण प्राणदाता – लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले

10. महाबली – बहुत शक्तिशाली वानर

11. अमित विक्रम – अत्यन्त वीरपुरुष

12. दशग्रीव दर्प: – रावण के गर्व को दूर करने वाले

13. वानरकुलथिन थोंडैमान – वानर वंश (तमिल) के वंशज

*हनुमान जी के तेरह नामों का नित्य नियम से पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं।

*प्रातः काल उठते ही हनुमान जी के तेरह नामों का 11 बार पाठ करने वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है।

*दोपहर के समय हनुमान जी के तेरह नामों के पाठ करने से लक्ष्मी जी की प्राप्ति होती हैं। धन-धान्य की वृद्धि होती है और घर में संपन्नता रहती हैं।

*संध्याकाल हनुमान जी के तेरह नामों का पाठ करने से पारिवारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

*रात को सोते समय हनुमान जी के तेरह नामों का जाप करने से शत्रु का नाश होता है।

*मंगलवार को ये तेरह नाम लाल स्याही से भोजपत्र पर लिखकर ताबीज बनाकर बाजु पर बंधने से कभी सिर दर्द नहीं होता तथा शनिदेव की साढ़े साती और अढईया से मुक्ति मिलती है।

[ये सारी जानकारी विभिन्न स्तोत्रों से ली गई है।]

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Hanuman, Hanuman Jayanti and Hanuman Chalisa.

हनुमान , हनुमान जयंती और हनुमान चालीसा ।

कल ६ अप्रैल २०२३ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म दिवस मनाया जाता है ।  इस ब्लॉग में इन तीनो पर चर्चा करेंगे।

हनुमान

वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान एक वानर वीर है । ( वास्तव में वानर एक विशेष मानव जाती ही थी, जिसका धार्मिक लांछन (चिन्ह) वानर अथवा उनकी लाँगल थी । पुराण कथाओं में यही वानर (पशु) रूप में वर्णित है ।) भगवान राम को हनुमान ऋष्यमुक पर्वत के पास मिले थे । हनुमान जी राम के अनन्य मित्र, सहायक और भक्त सिद्ध हुए। सीता का अन्वेषण करने के लिए वे लंका गये । राम के दौत्य का इन्होंने अद्भुत निर्वाह किया।

राम रावण युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है । रामावत वैष्णव धर्म के विकास के साथ हनुमान का भी दैवीकरण हुआ। वे राम के पार्षद और पुनः पूज्य देव के रूप में मान्य हो गये । धीरे-धीरे हनुमत अथवा मारुति पूजा का एक संप्रदाय ही बन गया। हनुमत कल्प में इनके ध्यान और पूजा का विधान पाया जाता है ।

( उपरोक्त विवरण हिंदू धर्मकोष से साभार लिया गया है )

वर्तमान में हनुमान जन-जन के प्रिय देव के रूप में प्रतिष्ठित हो गये । ऐसे देव जो सहज ही करुणा करते है, और सहज ही मिलते है । जो भक्तों को अष्ट सिद्धि और नव निधि प्रदान करते है । संकटों और कष्टों का निवारण करते है । हनुमान जी पर इतना विश्वास जन-जन का है की संकट पड़ने पर लोग स्वाभाविक रूप से हनुमान चालीसा बोलने लगते है । इस दृढ़ विश्वास के साथ की हनुमान जी सब सही कर देंगे ।

हनुमान जयंती

वर्तमान में सनातन धर्म के  पुनरूत्थान की जो आँधी चल रही है, उसमे कुछ लोगों का मानना है की हनुमान जयंती का नाम जयंती न रख कर कुछ अन्य रखा जाय ।

ये नाम कुछ सुझाए गये है:-

१. हनुमान अवतरण दिवस ।

२. हनुमान जन्मोत्सव ।

३. हनुमान पूर्णिमा ।

४.हनुमत प्राकट्य दिवस ।

इनमे से जो भी धर्मानुकूल जन को प्रिय लगेगा उसी को कालांतर में मानने लगेंगे ।

हनुमान चालीसा

भारत के जन जन में हनुमान चालीसा ऐसे बसी हुई है, की बाल वृद्ध सभी की ज़बान पर अपने आप उच्चारित हो जाती है । परिणाम ये है की हनुमान और हनुमान चालीसा एका कार हो गये है ।

हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी ने कब लिखी इस की कोई प्रामाणिक जानकारी नही है । मेरे विचार के अनुसार हनुमान चालीसा तुलसीदास जी के युवा अवस्था की ही रचना है । इस संबंध में श्री अमृत लाल नागर की पुस्तक मानस का हंस में जो वर्णन है वो उपयुक्त लगता है । उनके विद्याध्ययन के समय कुछ सहपाठी मित्रों द्वारा उकसाने पर वो रात के अंधेरे में एक पीपल के पेड के पास जाने को तैयार हो गये, जिसके बारे में प्रचलित था की वहा  ब्रह्मराक्षस रहता है । तब तुलसीदास जी ने दिन में हनुमान चालीसा की रचना की और रात्रि में उस पीपल के पेड तक निडर होकर गये । ये गोस्वामी जी की पहली पूर्ण रचना थी । धीरे-धीरे हनुमान चालीसा हर व्यक्ति की ज़बान पर हो गई।

आज पूरे भारत में ये स्थिति है की हनुमान, हनुमान चालीसा और तुलसीदास जी एक दूसरे के पर्याय बन गये है ।

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Gopal Sahai Ramjiwal – The New Age Astrologer

“I was never into Astrology, Rashifal. Rahu, Ketu or Shani were way beyond my comprehension. Until one day, when I came across a book on alternate astrology. Goswami Tulsidas Ji’s eloquent writing kept me hooked. Soon, I started developing a keen interest in this field.

I dwelled into Palm reading, Face reading, Yamal jyotish and Tarot cards too but not in a serious manner. After all the readings, I understood that everything was a game of vibrations. All the solitary planets send vibrations to planet Earth. Our bodies receive these vibrations from different planets and produce their own vibrations.

I was curious to learn the science behind all this. So I started researching more about the vibrations within our body. I was thrilled to learn that even Albert Einstein supported this theory. He had stated that everything in the universe sends vibrations. Great Thinker Tesla was also a staunch supporter of the vibration theory. ‘If you want to find the secrets of the universe, think in terms of energy, frequency and vibration.’ he said.

This new found world of horoscopic science was fascinating to me. I wanted to do something in this field. Something beyond what the other astrologers did.  I named this as VIBERSTROLOGY.

And that’s when the idea of building astrological software struck me. This was 25 years ago, a time before smartphones and the internet. But, I took the plunge. And after working on it for months, my very own viberstrology software was ready!

The next thing was to test it and I decided to set up my own stall outside a famous Mandir in our neighbouring town on day of a Mela. The crowd that came was way beyond what I could’ve imagined. People were so happy with the feedback, that by the end of the day even the village Sarpanch visited my stall. After that I put my computer in a famous mandir on a Wednesday where the footfall is high. The experience there was also positive. This gave me the boost.

But then, responsibilities showed up. I had to look after my business which kept me busy all through the day. Astrology started vanishing from my life. Nevertheless, I’d promised myself – ‘I’ll pursue astrology once I retire’. And finally 5 years ago, I fulfilled that promise and took up Astrology again.

In these 5 years, I’ve worked on developing 2 apps – Margdarshan Astrology and Good Morning Astrology. While building these apps I only had one thought in mind – Everyone who uses it should have a personalized experience. Astrology and Predicting the future differs from person to person, everyone has a different life and I didn’t want to give out generic sun sign predictions. After 4 years of designing, strategizing and executing, we finally went live last year!

In our society, the moment someone hears astrology they imagine temples and pandits. But Astrology is way beyond all this. Your horoscope is about the way you feel and act upon things. My apps are all set to bring a change in the way astrology is perceived. And I know for a fact that the day is not far away. Not because I am an astrologer who can predict the future. But because I know, I will give it my best and create my own future.”

To know more about Gopal Ramjiwal’s work visit these links
1. www.Goodmorningastrology.com
2. www.margdarshanastrology.com
3. www.viberstrology.com

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कर्ज , ताम्र पत्र और हनुमान

हर मानव के जीवन में ऐसा समय आता है जब वो आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा होता है । कर्ज और EMI की स्मस्याए उसके सहज जीवन को तनाव ग्रस्त बना देती है । ऐसे समय में वो धार्मिक कर्मकांड की तरफ़ मुड़ता है ।इस समय में हनुमान की पूजा उस को इस संकट से मुक्ति पाने में मदद करती है । कर्ज से मुक्ति पाने में ताम्र पत्र से बने उपकरण भी मदद करते है । साथ में मंगलवार एवं मंगल ग्रह का संयोग भी कर्ज को उतारने में मदद करते है ।

हनुमान, मंगलवार, मंगल ग्रह और ताम्रपत्र का क्या आपस में संबंध है और कैसे ये कर्ज उतारने में मदद करते है ।

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वृद्धि मंत्र

वृद्धि मंत्र

इन उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक को निश्चित कर ले और जाप प्रारम्भ कर दे ।

मंत्र जाप करने के लिए कमलगट्टों की माला उपयुक्त रहेगी ।

लक्ष्मी जी की स्थापना के साथ श्रीं यंत्र की स्थापना भी कर ले तो उचित होगा ।

श्री यंत्र प्राण प्रथिष्ट होना चाहिए ।

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पुष्य व्रत

मानव जाति में धन संपदा प्राप्त करने की और प्राप्त धन संपदा को बढ़ाने की अर्थात् वृद्धि करने की इच्छा अनंत काल से चली आ रही है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई उपाय बताये जाते है । कितने सफल है या कितने असफल है इसकी कोई guarantee नहीं ।कई ग्रंथों में कई टोटके लिखे है जो विभिन्न विद्वानों द्वारा सुझाये जाते है । ऐसा ही एक उपाय आपके सामने प्रस्तुत है ।

इस उपाय का नाम है पुष्य व्रत । ये एक पौराणिक ग्रंथों में वर्णित उपाय है । इसे मैंने “ उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान (हिन्दी समिति प्रभाग ) लखनऊ द्वारा प्रकाशित और डॉ राजबलि पांडेय द्वारा सम्पादित ग्रंथ हिंदू धर्मकोश से लिया है ।

इस व्रत को पुष्य व्रत कहा जाता है ।

उद्देश्य है धन संपदा की वृद्धि ।

इसमें व्रती को शुक्लपक्ष में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र से इसे प्रारम्भ करना है और एक वर्ष तक करना है ।

इसमें व्रती को निश्चित दिवस को स्नान कर शुद्ध हो कर माता लक्ष्मी की पूजन कर एक समय भोजन करना है । और एक माला वृद्धि मंत्र का जाप करना है । ये एक माला जाप पूरे महीने करना है । तत्पश्चात् अगले पुष्य नक्षत्र वाले दिन लक्ष्मी की पूजा करके जाप की संख्या बढ़ाकर दो माला प्रतिदिन करनी है । इस प्रकार हर पुष्य नक्षत्र के दिन एक एक माला जाप की बढ़ानी है । जब एक वर्ष पूरा हो जाये तो इस का समापन करना चाहिए और दशांस का हवन एवं ब्राह्मणों को भोजन और दान देना चाहिए । भोजन में खीर का भोज्य अवश्य होना चाहिये । मंत्र जाप के लिए किसी विद्वान को संकल्प दिया जा सकता है ।
ऐसा करने वाले व्यक्ति की सम्पति में निरंतर वृद्धि होती रहती है ।
वृद्धि मंत्र के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु मेरा अगला ब्लॉग देखे

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बर्बरीक से बने श्याम

बर्बरीक से बने श्याम

भक्तों के श्याम बाबा बड़े दयालु है । वो हारने वाले के साथ है ।भक्तों की हारी हुई बाज़ी जिताने के लिए बाबा के पास चमत्कारी तीन तीर है जो भगवान कृष्ण को भी अचंभित कर देते है । ये वो दिव्य तीर है जो बर्बरीक ने देवी से तपस्या के बाद वरदान के रूप में पाये थे ।
बर्बरीक नाम बाबा का जन्म नाम है जो इन्हें इनके माता पिता ने दिया था । वे पांडव वंश के थे । उनके दादा पांडव पुत्र महाबली भीम थे ।श्याम का नाम उनको भगवान कृष्ण ने दिया था उनकी निश्छलता दानवीरता और युद्ध में वीरता और सत्य के प्रति उनकी अटूट भावना और निडरता को देखते हुए दिया था । पूरी भागवत में , महाभारत में या कहीं किसी पुराण में ऐसा वृतांत नही मिलता है सुदर्शन चक्र धारी भगवान कृष्ण ने अपने भक्त को अपना ख़ुद का नाम दिया हो और अपने रूप में पूजे जाने का वरदान दिया हो । ये है बाबा की महिमा महाभारत काल में ये तीर धनुषबाण के तीर थे । कलियुग में इन तीरों का रूप बदल गया है । वे अब तीन तीरों की जगह बाबा की पूजा के, आराधना के उपकरण बन गये है ।
वो तीन उपकरण है

तीनो की फोटो लेने के लिए विजिट करे हमारी website Prayeveryday.in.

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दान त्रिवेणी

भारतीय पौराणिक साहित्य में ऐसी अनंत कथाये और आख्यान आते है जिनसे दान का महत्त्व प्रदर्शित होता है। इस लेख में दान के सम्बन्ध में कुछ जानकारी जो मैंने विभिन्न स्तोत्रों से एकत्र की है वो आप के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। दान करने से जंहा अलौकिक लाभ और परिणाम तो मिलते ही है अपितु लौकिक लाभ भी मिलते है। ऐसा माना जाता है की किसी भी प्रकार की पूजा या धार्मिक कार्य हो वो बिना दान के अपूर्ण मन जाता है। सामान्य रूप से हम लोगों को ये शिकायत करते सुनते है की निय प्रतिदिन पूजा करते है लेकिन फिर भी भगवान प्रस्सन नहीं होते। जीवन की समस्याएं बनी रहती है। और इन समस्याओं का मूल कारण होता है अर्थ का आभाव। हमारी सभी पूजा कर्मकांड का उद्देश्य आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाना होता है। परन्तु जब सफलता नहीं मिलती तो निराश होकर हम ईश्वर और पूजा कर्मकांड पर अविश्वास करने लगते है। परन्तु हम ये भूल जाते है की पूजा में लौकिक फल प्राप्ति के लिए दान का करना जरुरी है। हम नित्य पूजा आरधना करते है इस विश्वास के साथ की हमारे दुःख और आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे परन्तु एक छोटासा दान नहीं करते परिणामस्वरूप हमे सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते। जिस तरह दाल में नमक न डालने से स्वाद नहीं प्राप्त हॉट उसी तरह दान किये बिना आर्थिक सफलता नहीं मिलती है। एक पौराणिक आख्यान जो ब्रह्म पुराण में आया है वो दान और आर्थिक सफलता के सम्बन्ध की महत्ता को बताता है

प्राचीन काल में एक ऋषि हुए थे उनका नाम मौद्गल्या था उनकी साध्वी पत्नी का नाम जाबालि था। ऋषि नित्य यज्ञ किया करते थे और थे उसमे बड़ी श्रद्धा से आहुति देते थे। भगवान विष्णु उस को स्वयं ग्रहण करते थे। प्रतिदिन ऐसा क्रम चलता था। ऋषि बड़े संतोषी थे जंगल में जो भी उन्हें मिलता था उस से ही अपना गुजरा करते थे। एक दिन उनकी पत्नी ने कहा की मुझे कोई लालसा या लालच नहीं है परन्तु मेरी एक जिग्यसा है की जब भगवा विष्णु के दर्शन मात्र से दरिद्रता का नाश होता है तो आप को तो भगवान प्रतिदिन दर्शन देते है फिर आपको ये दरिद्रता क्यों सहन करनी पडी है ? ऋषि ने कहा मई कल भगवान से पूछूंगा। दुसरे दिन जब ऋषि ने भजन से ये ही प्रश्न किया तो भगवान ने कहा की हे ऋषिवर मै कर्म का फल देता हूं। आपने कभी कोई दान किया ही नहीं तो आपको समृद्धि कैसे प्राप्त हो ? तब ऋषि ने कहा की भगवान मै क्या दान दे सकता हूँ और किसको दान दूँ। तब भगवान ने कहा ये जो एक दाना जो का बचा है उसे मुझे दान कर दो ऋषि ने ऐसा ही किया तब भगवान् ने उन्हें लौकिक सम्पदा का आशीर्वाद दिया और उनकी दरिद्रता को दूर किया।
इस आख्यान से ये स्पष्ट हो गया की
०१- कोई भी पूजा भले ही वो नित्य पूजा ही क्यों न हो वो दान बिना अधूरी है।
०२ -दान सूक्ष्म भी हो परन्तु भावना और श्रद्धा से दिया जाय तो वो भगवन को स्वीकार्य है।
०३ -लौकिक सम्पदा प्राप्त करने के लिए दान करना जरुरी है।
अतः लौकिक पूजा की सफलता के लिए दान का होना जरुरी है। तभी हमे हमारी ईच्छा अनुरूप धन सम्पदा , सफलता प्राप्त होगी।
दान कई प्रकार से किये जाते है और कई प्रकार के होते है। मैंने मेरे विचार के अनुसार इन्हे तीन भागों में विभक्त किया है
०१ – नित्य दान
०२ -गौ दान
०३ – गुरु दान
नित्य दान से तातपर्य उस दान से है जो प्रतिदिन की पूजा के पश्चात चढ़ाना चाहिए परन्तु सामान्य रूप से कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है। और यही कारण होता है की पूजा की फल प्राप्ति नहीं होती है।
गौ दान के बारे में सभी जानते है परन्तु वर्तमान शहरी जीवन में गाय के लिए रोटी निकलना और फिर गाय को देना संभव नहीं है अतः मेरा निवेदन है की प्रतिदिन कुछ पैसा इस निमित्त अलग रखा जाय और महीने के अंत में किसी गौ शाला में दान दे दिया जावे तो उद्द्श्या की पूर्ती हो जाएगी।
गुरु दान से मेरा तात्पर्य ये है की गुरु की गद्दी के प्रति प्रतिदिन कुछ अंश अवश्य निकलना चाहिए और महीने के अंत में गुरुगृह भिजवा देना चाहिए
यदि दान की इस परिपाटी को निरंतर पालना करेंगे तो मेरा विश्वास है की आप की पूजा निरर्थक नहीं होगी और आप को अपनी लौकिक कामनाओ की पूर्ती अवश्य होगी।

गोपाल सहाय रामजीवाल

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