तंत्र-महाविज्ञान में यन्त्र

तंत्र महाविज्ञान की परम्परा में यन्त्र का विशेष महत्व है, क्योंकि यंत्र सम्बन्धित देवता का रूप माना गया है, जिसकी साधक उपासना करता है। साधना में यंत्र-रूपी देव शरीर में अपना ध्यान केन्द्रित करता है। कुलार्णव तंत्र में तंत्र की व्याख्या इस प्रकार की गई है-
यमभूतादि सर्वभ्यो मयेभ्योऽपि, कुलेश्वरि ।
त्रायते सततच्चैव तस्माद् यन्त्र मितीदितम् ॥
अर्थात् यम और समस्त प्राणियों से तथा सब प्रकार के भयों से त्राण करता है । हे कूलेश्वरी ! सर्वदा त्राण करने के कारण ही यह यंत्र कहा जाता है ।
यन्त्रों का निर्माण ज्यामितिक आधार पर विभिन्न रेखाओं, त्रिभुजों, वर्गों और वृत्तों से होता है । यन्त्र का महत्व कुलार्णव यन्त्र में इस प्रकार दर्शाया गया है-
“कामक्रोधादि दोषोत्य सर्वदः खनियन्त्रणात् ।
यन्त्रमित्याहुरेतस्मिन देव प्रणिति पूजितः ।।”
अर्थात् काम-ऋॊधादि दोषों के समस्त दुखों का नियन्त्रण करने से इन्हें यन्त्र कहा जाता है । यन्त्र के आधार पर पूजन से देवता तुरन्त प्रसन्न होते हैं ।

“श्री” यन्त्र
यन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ “श्री” यन्त्र है । इसका सम्बन्ध भगवती त्रिपुरसुन्दरी से है। (“योगिनी हृदय” में इसके आविर्भाव के सम्बन्ध में उल्लेख है कि परम्परा शक्ति अपने संकल्प बल से विश्व ब्रह्माण्ड का रूप धारण करती है और अपना रूप निहारती है तो ‘श्री’ चत्र का आविर्भाव होता है।)

श्री यन्त्र में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं विकास का प्रदर्शन है । इसमें श्री का विवेचन ‘श्रयते या सा श्री:” अर्थात् जो नित्य परमब्रह्म का आश्रयण करता है वह श्री है । जैसे प्रकाश अथवा गर्मी की अग्नि से और चन्द्र की चन्द्रिका से अभिन्नता रहती है । उसी प्रकार ब्रह्म और शक्ति की अभिन्नता है । आगम में वर्णन है-
“न शिवेन बिन देवो, न देव्या च बिना शिवः ।
नान्योरन्तर किञ्चिच्चन्द्रचन्द्रिकयोरिव ॥”

अर्थात् शिव के बिना देवी नहीं और देवी के बिना शिव नहीं । इन दोनों में कुछ भी अंतर नहीं है जैसे चन्द्र र चन्द्रिका में अन्तर नहीं होता।
“श्री” के कारण ही ब्रह्मा उत्पत्ति, स्थिति और पालन में सामर्थ्य प्राप्त करता है । शंकराचार्य ने कहा है-
शिवः शक्त्या युक्तो तदिमवति शक्तः प्रभविंतु। ।
न चेदेवं देवो न खलु कुथलः स्पन्दितुमपि ।।
अर्थात जो शिव-शक्ति सहित होता है, वही शक्तियुक्त एवं सामर्थ्यंवान होता है । वह
यदि शक्तिहीन हो तो बह स्पन्दन में भी योग्य नहीं होता।
महामहिमामयी त्रिपुरसुन्दरी के श्री यन्त्र में अनेक वृत्त हैं । सबसे भीतर वाले वृत्त के केन्द्र में एक बिन्दु है । इस बिन्दु के चारों ओर नौ त्रिकोण हैं जिनमें से पांच त्रिकोणों की नोंके नीचे की ओर शक्ति युक्तियां तथा चार त्रिकोणों की नोंके ऊपर की ओर शिव युतियां होती है । अधोमुखी पांचों त्रिकोणों पंच पाण, पंच ज्ञानेन्द्रियों, पंच कर्मेंन्द्रियों, पंच तन्मात्रा झरोर पंच महाभूतों के प्रतीक है ।
ऊर्ध्वमुखी चारों त्रिकोण शरीर में जीव, प्राण, शुक्र और मज्जा के द्योतक हैं । ये ब्रह्माण्ड में मन, बुद्धि, चित्त पौर अहंकार के द्योतक हैं ।
चारों ऊर्ध्वमुखी और पांचों अधोमुखी त्रिकोण नौ मुल प्रवृतियों के प्रतिनिधि है ।
श्री यन्त्र में एक अ्रष्टदल कमल और दूसरा सोलह दल वाला कमल है । अष्टदल कमल अन्दर बाले वृत्त के बाहर और दूसरा उसके ऊपर बाले वृत्त के बाहर है । इनका वरणन भगवान शंकराचार्य ने “प्रानन्द लहरी” में करते हुए बताया है–
चतु्भिः श्रीकण्ठेः शिवयुवतिभिः पंचमिरपि ।
प्रभिन्नाभिः शम्भोनंबभिरपि मूलप्रकृतिमि: ।
अयश्चत्वा दिशदवसुदलकलाब्ज त्रिवलयं ।
त्रिरेखाभिः साधं तव भवन कोणः परिणताः ।।
अ्र्थात् चार श्रीकण्डों के पांच शिव युतियों के शम्भु एव शक्ति की नौ अभिन्न मूल प्रकृतियों के 42 वसुदल कलाओं की त्रिवलय तीन रेखाओं के साथ आपके भवन कोण में परिणित होते हैं ।
श्री यन्त्र में ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण अग्नि तत्व के, वृत्त वायु के, बिन्दु आकाश का घरातल पृथ्वी तत्व का ओर अरघोमुखी त्रिकोण जल तत्व के प्रतीक है । यह यन्त्र सृष्टि क्रम का द्योतक है । शकर और इनके मतानुयायी इसी यन्त्र के उपासक है । इनके मठों में इस श्री यन्त्र की विशेष प्रतिष्ठा है ।
कौल मत सम्बन्धी “श्री यन्त्र” में जो अन्तर होता है, इसमें पांचों शक्ति त्रिकोण अधोमुखी और चारों शिव सम्बन्धी त्रिकोण ऊर्ध्वमुखी होते हैं ।

श्री यंत्र भारतीय पौराणिक संस्कृति का मुख्य उत्पादन है जो आपको भौतिक धन-संपत्ति एवं वैभव प्रदान करने का साधन है। यदि यह आपके पास है तो बहुत उत्तम बात है परन्तु अगर नहीं है तो आप हमारी वेबसाइट से इस खरीद सकते हैं।
क्या आपका श्री यंत्र जागृत है?
जागृत होने का तात्पर्य कई लोगों को लगता है कि क्या श्री यंत्र को पूजन करके उसका अभिषेक कर दिया गया है एवं प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई है। परन्तु Prayeveryday में जागृत से तात्पर्य खाली अभिषेक करके प्राण प्रतिष्ठा करना ही नहीं है। जागृत होने से हमारा तात्पर्य है कि क्या “श्री” यंत्र आपको लाभ दे पा रहा है की नहीं?
यदि आपको लगे की आपको आशा अनुसार लाभ नहीं हो रहा तो आप अपने यंत्र को जागृत करें।
कैसे?

  1. श्री यन्त्र एक मशीन है जो आपको धन संपत्ति एवं वैभव प्रदान करती है।
  2. इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें।
  3. प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद इस धन और वैभव प्रदान करने वाली मशीन में input डालें अर्थात् raw material डालें क्योंकि बिना raw material के कोई मशीन उत्पादन नहीं कर सकती।
  4. श्री यंत्र का कच्चा माल (raw material) है “दान”, नियमित रूप से कुछ दान अवश्य करें। नित्य पूजन के बाद कुछ दान इस पर चढ़ावें एवं उस चढ़ावें को किसी मंदिर में या किसी गरीब व्यक्ति को सहायता देने में इस्तेमाल करें, जानवरों को दाना डालें, चीटियों को दाना डालें, कुत्तों को दूध पिलावें, जबतक दान के रूप में raw material श्री यन्त्र में आप नहीं डालेंगे तो श्री यंत्र जागृत नहीं होगा।
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Importance of Daanam!!!

Theory of daanam

Sometimes we forget that our relationship with God is a two-way street. We often leave out the ritual of daanam from our daily prayers. We often pray to God for tangible material things, without realizing that we are not offering God the same courtesy. In order for our daily prayers to work, one key component is making an offering to God. Let us look at a story from Braham Purana to understand the importance of this ritual of giving.

There was once a sage named Maugdaliya. He was a simple yet wise man. His repute was of such great worth that his prayers were accepted by Lord Vishnu himself. He never asked the Lord for anything material, but he conducted poojas daily. One day, Maugdaliya’s wife Jabali, asked him why they were so poor if his prayers had such worth. Maugdaliya then posed this question to Lord Vishnu. Lord Vishnu told him that he could not give Maugdaliya material wealth because Maugdaliya never gave him any daan. To this, Maugdaliya responded saying that he had nothing worth offering. Lord Vishnu told him that the few corns of barley that he had would suffice and so Maugdaliya gave them to the Lord as offering. Seeing the sage’s dedication, Lord Vishnu blessed him with worldly riches. The katha of Krishna Sudama is also famously known. Krishna knew that Sudama would not make an offering to him so he forcefully took two morsels of rice from his hand. The next day he bestowed Sudama with immense wealth.

From these kathas it can be understood that the objective of daanam is not to give away your riches. The objective of daanam is to show your devotion to God by being willing to offer him whatever you have. Daanam can be divided into three categories for daily puja:

1. Guru daanam
This is the daanam offered to the Guru who is acting as a conduit for your prayer and conversation with God.
2. Gau graas daanam
This refers to the daanam offered to the sacred animal, cow. Grazing the cow and giving him his first morsel is considered to be an act of devotion to God.
3. Dev daanam
The final stage, is the offering that you make directly to God. These offerings are made to Ishta Devta so that your prayers for material wealth can be met.

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